अकड़, ठसक और प्यार ‘गौरव की स्वीटी’ में
आजकल ओटीटी प्लेटफॉर्म की बाढ़ सी आई हुई है। कुछ समय पहले राजस्थान में ओटीटी प्लेटफॉर्म लॉन्च किया गया था। तो इधर हरियाणा का अपना ओटीटी प्लेटफॉर्म भी बना ‘स्टेज एप्प’ एम एक्स प्लेयर, हॉट स्टार , नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम जैसे बड़े ओटीटी प्लेटफार्म तक कई बार पहुंच न बना पाने के कारण तो कई बार अपने ही क्षेत्र के क्षेत्रीय सिनेमा को आगे बढ़ाने के इरादों से ये प्लेटफार्म्स
Read Moreगांधीजी के अंतिम दस मिनट!
गोडसे ने गोली मारने के पहले गांधी को प्रणाम नहीं किया था! उसने गांधीजी को सही से निशाने पर लेने के लिए अपनी पोजीशन बनाई थी! गोडसे ने गांधीजी के बचाव में आई मनु बेन को धक्का मार कर गिराया! आज के दिन 30 जनवरी 1948 में गांधीजी की हत्या की गई। नाथूराम गोडसे ने किस बर्बरता से गांधीजी को मारा वह पूरा विवरण पढ़ें और गांधी जी के भारत
Read Moreगोपाल मोहन मिश्र की कविता- मां सरस्वती
अर्चना के पुष्प चरणों में समर्पित कर रहा हूँ , मन हृदय से स्वयं को हे मातु अर्पित कर रहा हूँ I मूढ़ हूँ मैं अति अकिंचन सोच को विस्तार दो , माफ़ कर मुझ पातकी को ज्ञान से तुम वार दो I लोभ, स्वार्थ, दम्भ और घमंड काट दो हे मातु तुम, स्वच्छ निर्मल भाव की सौगात दो हे मातु तुम I कर सकूँ आक्रमण तम पे, कलम में
Read Moreडॉ गोरख प्रसाद मस्ताना में गीतों में जीवन की अभीप्सा- देवीदत्त मालवीय
आज 1 फरवरी 2022 को हिन्दी-भोजपुरी के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना का जन्मदिन है। लोकमंच पत्रिका परिवार अपने प्रिय साहित्यकार को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित करता है। पढ़ें, उनके गीतों पर यह आलेख- संपादक। जीवन जीने की इच्छा शक्ति मानव को कठिन से कठिन परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है वहीं जीने की कामना जीवन के प्रत्येक बाधाओं से लड़ने हेतु बल देती है, क्योंकि
Read Moreरीता दास राम की ‘स्त्री तुम’ और अन्य कविताएँ
(1) लिखना मिटाना पूरी शालीनता से ख़ुशी लिखेंगे लिखेंगे भद्र और सभ्यता समझ, संस्कृति, सदाचार, समानता लिखना है और लिखना है कि होंगे कामयाब मान्यता के गर्भ में उतरे विश्वास पर लिखना है स्पर्श की भाषा कि अज्ञान अबूझ रह जाए अबोला मिटाने हैं किस्से कहानी कि किस तरह भाई भाई हुए अलग गढ़ गढ़ कर मनगढ़ंत कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, जबर्दस्त रीति-रिवाजों से अटा समाज आरोपित न हो रहे नवांकुर पूर-सुकून
Read Moreसाहित्य का नया रास्ता- प्रमोद रंजन
मित्र हरे प्रकाश उपाध्याय के ताजा कविता-संग्रह ‘नया रास्ता’ से गुजरते हुए कुछ आवांतर बातें घुमड़ती रहीं। हरे प्रकाश उपाध्याय बिहार के भोजपुर अंचल के वासी हैं तथा हिंदी के उन कवियों में शामिल हैं, जिन्हें कम उम्र में ही सराहना मिली। ‘खिलाड़ी दोस्त और अन्य कविताएं’ (2009) उनका पहला कविता संग्रह था। ‘नया रास्ता’ उनका दूसरा संग्रह है। उन्हें कविता लेखन के लिए अंकुर मिश्र सम्मान से नवाजा जा
Read Moreकर्पूरी ठाकुर न तो अंग्रेजी ‘उन्मूलन’ के पक्षधर थे और न ही ‘सवर्ण’ विरोधी- सुरेंद्र किशोर
कर्पूरी ठाकुर के जन्म दिन (24 जनवरी ) पर मैं लोहियावादी समाजवादी कार्यकर्ता की हैसियत से 1972-73 में करीब डेढ़ साल तक कर्पूरी ठाकुर का निजी सचिव रहा था। मैं पटना के वीरचंद पटेल पथ स्थित उनके सरकारी आवास में ही रहता था। किसी व्यक्ति को यदि आप लगातार डेढ़ साल तक रात-दिन देखें तो आप जान जाएंगे कि उसमें कितने गुण और कितने अवगुण हैं। एक पंक्ति में यह
Read Moreकर्पूरी जयंती के अवसर पर- सुरेन्द्र किशोर
यह विवरण उनके लिए जो कर्पूरी ठाकुर के नाम पर आज राजनीति करते हैं। 1972 में कर्पूरी ठाकुर ने अपने परिवार को कह दिया था कि विधायक के रूप में जितने पैसे मुझे मिलते हैं ,उससे मैं आपको पटना में रखकर खिला नहीं सकता, इसलिए आप लोग गांव यानी पितौंझिया जाकर रहिए। कर्पूरी जी की पुत्री की शादी जब हुई तब वे मुख्यमंत्री थे। उन्होंने गांव में शादी की।अपने मंत्रिमंडल
Read Moreबड़ी बात तो यह कि ‘लोहिया’ संसद में आये हैं- रामधारी सिंह दिनकर
लोहिया साहब – रामधारी सिंह ‘दिनकर’ डॉक्टर राममनोहर लोहिया से मेरी पहली मुलाकात सन् 1934 या 35 में पटना के सुप्रसिद्घ समाजवादी नेता स्वर्गीय फूलन प्रसाद जी वर्मा के घर पर हुई थी और हम लोगों का परिचय मित्रवर श्री रामवृक्ष बेनीपुरी ने करवाया था। उस समय लोहिया साहब मुझे उद्वेगहीन, सीधे सादे नौजवान के समान लगे थे, क्योकि जितनी देर हम साथ रहे, उहोंने बातें कम और काफी विनम्रता
Read Moreजेपी आंदोलन और इमरजेंसी में सुरेन्द्र किशोर और उनकी पत्नी रीता सिंह की भूमिकाएं
राकेश कुमार लिखित पुस्तक ‘लोकराज के लोकनायक’ से साभार हम पति-पत्नी (यानी, सुरेंद्र किशोर और रीता सिंह) क्रमशः सन 1974-75 के जेपी आंदोलन और 1975-1977 के आपातकाल के दौरान अपने-अपने ढंग से अलग-अलग सक्रिय रहे थे। हम दोनों अपनी जान हथेली पर लेकर वह काम कर रहे थे। पर, सन 1977 में केंद्र और बिहार में जनता सरकारें बन जाने के बाद हमने सरकार,नेता या किसी दल की ओर पलट
Read Moreहैरान नहीं परेशान करता है ये ’36 फ़ार्म हाउस’
किसी भी फ़िल्म को देखने से पहले आप क्या देखते हैं? उसकी कहानी? उसके एक्टर्स? उसमें उनकी की गई एक्टिंग? कोई जॉनर? डायरेक्टर? या कुछ और? सिनेमैटोग्राफी, बैकग्राउंड स्कोर, गीत-संगीत, कैमरा आदि के बारे तो नॉर्मल दर्शक कहाँ देखते-सोचते हैं? ’36 फ़ार्म हाउस’ देश के किसी कोने में बना यह आलीशान बंगला और उसकी 300 एकड़ जमीन। इस सब की एक बूढ़ी, विधवा मालिकन। जिसने अपने एक बेटे के नाम
Read Moreजरूरी हैं चुनाव सुधार- रसाल सिंह
पिछले दिनों केंद्र सरकार ने चुनाव सुधार की दिशा में निर्णायक पहल की हैI सरकार ने मतदाता पहचान-पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने, पंचायत/निकाय चुनावों और विधानसभा/लोकसभा चुनावों की मतदाता सूचियों को एक करने, नए मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में शामिल करने के लिए18 वर्ष की आयु-निर्धारण करने हेतु एक तिथि (एक जनवरी) की जगह 4 तिथि (1 जनवरी,1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर) करने जैसे तीन महत्वपूर्ण
Read Moreसंसद में लोहिया- सुरेन्द्र किशोर
1962 के चीनी हमले को लेकर डा. लोहिया का लोक सभा में रहस्योद्घाटन डॉ राममनोहर लोहिया ने कहा था कि जवाहरलाल नेहरू सरकार ने अपनी सेना को यह सर्कुलर भेज दिया था कि यदि किसी जगह का पतन शुरू होने वाला हो तो उसको बिना लड़े ही खाली कर देना है। डा. राममनोहर लोहिया एक उपचुनाव के जरिए पहली बार सन 1963 में लोक सभा में चुनकर गए थे। वे
Read Moreगिन लीजिये अपनी जाति के जिला परिषद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष- वीरेंद्र यादव
जिला — अध्यक्ष — जाति — उपाध्यक्ष — जाति पश्चिम चंपारण- निर्भय महतो- आदिवासी- रेणु देवी- यादव पूर्वी चंपारण- ममता राय- भूमिहार- गीता देवी- यादव सीवान- संगीता यादव- यादव- चाँदतारा खातून- मुसलमान गोपालगंज- सुभाष सिंह- राजपूत- अंकुर राय- भूमिहार सारण- जयमित्रा देवी- यादव- प्रियंका सिंह- राजपूत वैशाली- रमेश चौरसिया- बरई- सुंदरमाला देवी- यादव भोजपुर- आशा देवी- पासवान- लालबिहारी यादव- यादव बक्सर- विद्या भारती- यादव- नीलम सिंह- राजपूत कैमूर- रिंकी देवी-
Read Moreहिन्दी सिनेमा और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन- अरुण कुमार
“कला प्रकृति का प्रतिबिंब है। अनादि काल से यह मानव प्रकृति के रम्य और विभिन्न रूपों को जीवन के विशाल ‘कैनवास’ पर उतारती चली आ रही है। चित्र कला, संगीत कला, साहित्य, शिल्प और नाट्यकला की भांति ‘चित्रपट’ उनमें एक नवीन रूपभिव्यक्ति है।” – महेन्द्र मित्तल, भारतीय चलचित्र, पृ.1 ‘चित्रपट’, चलचित्र या ‘सिनेमा’ कला के सभी प्रचलित रूपों को अपने में समाहित कर जीवन की सजीव एवं मार्मिक अभिव्यक्ति करने
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