कपिलदेव प्रसाद को पद्मश्री बावनबूटी कला को वरदान- अरुण कुमार

केंद्र सरकार ने कपिलदेव प्रसाद को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान कर बावनबूटी कला को नया जीवन देने की सार्थक पहल की है।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर इस बार बिहार के तीन लोगों आनंद कुमार, सुभद्रा देवी और कपिलदेव प्रसाद को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया है। ये तीनों अपने-अपने तरीके और संसाधनों से सामाजिक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। ‘सुपर-30’ के माध्यम से गरीब बच्चों को आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराने वाले गणितज्ञ आनंद कुमार से अधिकांश लोग परिचित हैं लेकिन सुभद्रा देवी और कपिलदेव प्रसाद का नाम बहुत कम लोग जानते हैं। ये दोनों नाम ऐसे हैं जो कला के क्षेत्र से जुड़े हैं लेकिन वे और उनकी कलाओं के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। पद्मश्री पुरस्कारों की घोषणा के बाद ये लोग पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए हैं। मधुबनी के सुभद्रा देवी लुप्तप्राय ‘पेपरमेसी कला’ और नालंदा के कपिलदेव प्रसाद बावनबूटी कला’ के न केवल सिद्धहस्त कलाकार हैं बल्कि उनके प्रचार-प्रसार में भी महती भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। पद्मश्री पुरस्कारों से इन कलाओं को नया जीवन मिल सकता है।

ऐतिहासिक जिला नालंदा के बिहारशरीफ प्रखण्ड के बसावन बीघा गांव के निवासी बुनकर कपिलदेव प्रसाद को जब गृह मंत्रालय से फोन पर सूचना मिली तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ। कपिलदेव प्रसाद की शिक्षा-दीक्षा केवल 7 वीं कक्षा तक हुई है लेकिन वे बावनबूटी साड़ी बुनने की कला का प्रशिक्षण आस-पास के क्षेत्रों के बुनकरों को भी देते हैं। इसके लिए उन्होंने ‘बुनकर सहयोग समिति’ का भी गठन किया है। कपिलदेव प्रसाद 15 वर्ष की आयु से बुनकर का काम कर रहे हैं और उनके दादा शनिचर तांती भी इस कला के सिद्धहस्त कलाकार थे। कपिलदेव प्रसाद ने बावनबूटी साड़ी के लिए जीआई टैग प्राप्त करने का आवेदन भी दिया था जिसे केन्द्र सरकार ने स्वीकार कर लिया है। 1960 के आसपास नालंदा के बिहारशरीफ के नवरत्न महल में एक सरकारी बुनकर स्कूल खोला गया था। इस स्कूल में विद्यार्थी अपने नियमित स्कूल के बाद समय निकालकर आते थे और बुनकरी सीखते थे। कपिलदेव प्रसाद ने 1963 से 1965 के बीच इसी स्कूल में बुनकरी सीखी और अपने पिता का हाथ बंटाते हुए इस कला में दक्षता प्राप्त की। 1990 में सरकारी उपेक्षा के कारण यह स्कूल बंद हो गया और बुनकरी सिखाने का सरकारी प्रयास भी बंद हो गया लेकिन कपिलदेव प्रसाद ने यह जिम्मेदारी स्वयं उठा ली जिसका निर्वाह वे आज तक कर रहे हैं।
बिहार का इतिहास हस्तकलाओं के संदर्भ में काफी समृद्ध रहा है। मौर्य काल में यह कला अपने चरम पर थी। मौर्य काल में ही जब ग्रीक यात्री मेगास्थनीज बिहार आया तो पाटलीपुत्र की हस्तकलाओं को देखकर उसने आश्चर्यचकित होते हुए कहा था कि ऐसी कला का सृजन केवल देवता ही कर सकते हैं। बिहार की ऐसी ही हस्तकला का एक बेहतरीन उदाहरण है- बावनबूटी साड़ी बनाने की कला। इस कला का इतिहास बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है। कॉटन और तसर के कपड़े पर बौद्ध धर्म से सम्बंधित चिन्हों को हाथ से बुनाई कर यह साड़ी तैयार की जाती है। ये चिन्ह पूरे ब्रह्मांड के सौंदर्य को अभिव्यक्त करती हैं। बौद्ध धर्म में आठ चिन्हों का बहुत महत्व है और बावनबूटी साड़ियों पर इन्हीं आठ चिन्हों को बुना जाता है। बौद्ध धर्म से सम्बंधित ये चिन्ह हैं- कमल का फूल, बोधिवृक्ष, बैल, सुनहरी मछली, धर्मचक्र, फूलदान, पारसोल और शंख। ये चिन्ह भगवान बुद्ध की महानता भी प्रदर्शित करते हैं और इन सबके बौद्ध दर्शन में गूढ अर्थ होते हैं। भगवान बुद्ध ने अपने उपदेशों में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का वर्णन इन्हीं चिन्हों के रूप में किया है। जैसे श्वेत शंख सादगी और संगीत के मुधुर ध्वनि को दर्शाता है। यह व्यक्ति को अज्ञानता से हटाकर उजाले की ओर जाने व दूसरों की भलाई करने की प्रेरणा देता है। स्वर्ण मछली जीवन में स्वतंत्रता और बिना भय के जीवन जीने का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि सदियों पहले बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार से जुड़े बुनकरों ने नालंदा के नेपुरा गांव में इस कला को विकसित किया था। इस साड़ी को ‘बावनबूटी साड़ी’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि पूरी साड़ी में एक जैसी 52 बूटियां अर्थात मौटिफ़ होते हैं।

प्राचीन काल में पूरे एशिया में यह कला बहुत लोकप्रिय थी। इससे बनी साड़ियां, कपड़े, पर्दे, चादर न केवल भारत बल्कि बौद्ध धर्म मानने वाले दूसरे देशों में निर्यात किए जाते थे। कुछ दशक पहले तक जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका आदि देशों में भी इन कपड़ों की खूब मांग थी। अंग्रेजों के शासनकाल में पूरे देश के हस्तशिल्प उद्योग पर बुरा प्रभाव पड़ा तो बिहार भी इससे अछूता नहीं रहा। आजादी के बाद की सरकारों ने भी इन उद्योगों को बचाने की ठोस पहल नहीं की। देश की आजादी के तुरंत बाद बावनबूटी कला के बारे में देशभर में चर्चा तब हुई जब प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने इस कला के आधार पर निर्मित पर्दों को राष्ट्रपति भवन में लगवाया था। यूनेस्को ने बावनबूटी कला को संरक्षण देने का प्रयास तो किया लेकिन उसका कोई विशेष लाभ नहीं मिला। अब दशकों बाद जब कपिलदेव प्रसाद को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया है तो देश एकबार फिर से इस कला से परिचित हुआ है। केन्द्र सरकार द्वारा बावनबूटी कला के संरक्षण और प्रचार-प्रसार से जुड़े बुनकर को पद्मश्री पुरस्कार देना एक सराहनीय पहल है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘माय हैंडलूम माय प्राइड’ का नारा दिया है। यह पुरस्कार इस नारे को फलीभूत करने की दिशा में कदम बढ़ाने जैसा है। वर्तमान समय में प्रधानमंत्री मोदी स्वयं में एक ब्रांड हैं और वे इससे पहले बिहार के लिट्टी चोखा को प्रोमोट कर चुके हैं। ‘ब्रांड मोदी’ का लाभ ‘बावनबूटी कला’ को भी मिले तो यह बिहार के हस्तकला उद्योग के लिए वरदान साबित होगा।
देश की आजादी के तुरंत बाद बावनबूटी कला के बारे में देशभर में चर्चा तब हुई जब प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने इस कला के आधार पर निर्मित पर्दों को राष्ट्रपति भवन में लगवाया था।
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘हथकरघा से आत्मनिर्भरता’ का भी नारा दिया है और वे देशवासियों से हथकरघा उत्पादों का उपयोग करने को प्रोत्साहित कर रहे हैं। हथकरघा उद्योग देश की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। इसके संरक्षण से देश की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण को भी बल मिलेगा। नालंदा के बावनबूटी कला के बुनकर ‘हथकरघा से आत्मनिर्भरता’ की ओर बढ़ें इसके लिए अन्य प्रयास भी जरूरी हैं। केन्द्र सरकार द्वारा हथकरघा से सम्बंधित कार्यों के लिए 25 से 35 प्रतिशत तक का अनुदान भी दिया जा रहा है। अब राज्य सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह इस कला के प्रचार-प्रसार का प्रयास करे ताकि इसके माध्यम से लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने में मदद मिल सके। बिहार के ही भागलपुर के बुनकरों की प्रसिद्धि देश-विदेश में है लेकिन नालंदा के ये बुनकर अब तक इस मामले में दुर्भाग्यशाली रहे हैं। संयोग से बिहार के मुख्यमंत्री का गृह जिला नालंदा है और उनका विशेष दायित्व है कि वे नालंदा के बुनकरों के विकास के सार्थक प्रयास करें। केंद्र सरकार की तरह यदि राज्य सरकार भी हस्तकला की ‘बावनबूटी कला’ के प्रचार-प्रसार का प्रयास करे तो ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना साकार हो सकता है।
लेखक- डॉ अरुण कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय, arunlbc26@gmail.com, 8178055172
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