फिर याद आ ही गए न तुम

फिर याद आ ही गए न तुम
निराश जीवन के कठिनतम क्षणों में ..
मन में बवंडर लिए मैं मिला तुमसे और
तुम्हारे प्रेम ने मुझे फिर से चलना सिखाया..
तुम्हारी मृदुलता भरे स्पर्श ने सिखलाया मुझे,
एक तारा के अस्त होने पर आकाशगङ्गा
किस पीड़ा से गुजरती है..
और बादलों के सहसा रीतने पर
आसमान किस तरह रोने लगता है!
जब-जब तुम मिली मुझसे —
मैं पहले से ज्यादा स्थिर
और उन्मुक्त होता चला गया!
जानते हो- जब भी रहे मुझसे दूर कभी
तब तुम्हारे और मेरे मध्य संचार का
जो एक विरल साधन है
वह है मेरा तुम्हारे मौन को निरन्तर सुनते रहना..
जब मैं तुमसे मिला
तब मैं प्रेम, विछोह और सानिध्य की
पीड़ाओं से अनजान था!
और हुआ भी यही कि तुम्हारे सानिध्य ने
अथाह सुकोमल आसमान दिया,
जिसमें उड़ता रहा मैं तुम्हारे द्वारा
दिये रङ्ग बिरङ्गे पंखों को लगा कर..
मैं इस बात पर यकीन कर चुका था कि,
प्रेम में पीड़ा का प्रश्न ही नहीं!
और फिर तुम्हारा जाना
तब अनगिनत प्रश्न भी उमड़े और
अथाह पीड़ा एवम् स्तब्धता भी..
तुम्हारा जाना एक त्रासदी है
पर तुम्हारा मिलना
एक सभ्यता का शुरू होना था,
हाँ मिलना तुम
इस प्रलय के बाद..
तुम जानते हो न
कितनी आशंकाएँ होती हैं मन में
जब तुमसे दूर होता हूँ
ना ही बेचैनी खत्म होती है ना ही प्रतीक्षा
बस खत्म होता जा रहा हूँ मैं…
स्यात् इन परिस्थितियों को
या तो ईश्वर समझ सकते हैं या तो तुम!
सुनो न
क्यों कोई जादू सा नहीं होता
जो इन दूरियों को विलुप्त कर
फिर से ले आये तुम्हें मेरे पास
मेरे साथ,
फिर मिला दे हमें…
कुछ तो कम हो कष्ट
तुम्हारा भी मेरा भी…
और हाँ!
जब हम मिले थे
हमने एक नहीं लगाए थे दो वृक्ष,
प्रेम के साथ-साथ कोमल स्वर्णचम्पा के भी,
पर तुम इनके खिलने से पहले ही चली गई!
अब जब ये खिल उठते हैं सूर्योदय के साथ-साथ
और महकते हैं निशांत तक
तुम्हारी स्मृतियों को
और भी तप्त कर जाते हैं…
लेकिन मैं जानता हूँ
ये हमारे फूल हैं!
जो खिलते हैं रोज
तुम्हारी प्रतीक्षा में
आज भी आती हैं नीली तितलियां इन पर
और बिना माथा सहलाये चली जाती हैं,
देखना अब जब तुम आओगी,
बहारें फिर से आएंगी… !!

प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार, लखनऊ, उत्तर प्रदेश, सचलभाष/व्हाट्सअप : 6392189466, ईमेल : prafulsingh90@gmail.com