कर्पूरी जयंती के अवसर पर- सुरेन्द्र किशोर

यह विवरण उनके लिए जो कर्पूरी ठाकुर के नाम पर आज राजनीति करते हैं।
1972 में कर्पूरी ठाकुर ने अपने परिवार को कह दिया था कि विधायक के रूप में जितने पैसे मुझे मिलते हैं ,उससे मैं आपको पटना में रखकर खिला नहीं सकता, इसलिए आप लोग गांव यानी पितौंझिया जाकर रहिए।
कर्पूरी जी की पुत्री की शादी जब हुई तब वे मुख्यमंत्री थे। उन्होंने गांव में शादी की।अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को भी आमंत्रित नहीं किया था। उन्होंने आदेश दे दिया था कि दरभंगा व पास के किसी हवाई अड्डे पर उस दिन राज्य सरकार का कोई भी विमान मुख्य सचिव की अनुमति के बिना नहीं उतरेगा। कर्पूरी जी को आशंका थी कि आखिरी समय में शादी का पता चल जाने के बाद शायद कोई मंत्री वहां पहुंच न जाए। मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर चाहते थे कि बेटी की शादी देवघर मंदिर में हो, किंतु कर्पूरी जी की पत्नी की जिद पर गांव में शादी हुई। इसके विपरीत अधिकतर सत्ताधारी नेता पटना में शादी करते हैं ताकि अधिक से अधिक उपहार मिल सके।
राजनीति में आने से पहले कर्पूरी जी शिक्षक थे। अंत तक उनका जीवन स्तर एक शिक्षक के जीवन स्तर के समान ही रहा। उन्होंने स्तरोन्नयन नहीं किया।
कर्पूरी जी झोपड़ी में पैदा हुए थे। कर्पूरी जी के निधन तक उनके पास पुश्तैनी झोपड़ी ही रही, महल नहीं बना।
पटना की विधायक काॅलोनी में उन्हें जमीन मिल रही थी, कर्पूरी जी ने नहीं ली।
अपने जीवन काल में अपने परिवार के किसी सदस्य को विधायक तक का टिकट नहीं लेने दिया।
डा. राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि यदि हमारी पार्टी के पास पांच कर्पूरी होते तो मैं समाजवादियों को दिल्ली की सत्ता दिलवा देता।
कर्पूरी ठाकुर ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में सीबीआई को लिखा था कि ‘‘सीबीआईको बिहार सीमा में कोई भी गंभीर मामले की जानकारी मिले तो वह गोपनीय ढंग से उसकी जांच शुरू कर दे। उसमें राज्य सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक नहीं होगी।’’ यह आदेश सन 1996 के आरंभ तक बिहार में प्रभावी रहा।
इस तरह की अन्य कई बातें हैं जो कर्पूरी ठाकुर को इस देश के अधिकतर नेताओं से अलग करती हैं।

लेखक- सुरेन्द्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार, पटना, बिहार
