पूजा सिंह की कविता

न मैं तुमसे अधिक और न तुम मुझसे कम
मैं स्त्री
यह सच है
मैं हूँ घर की धुरी।
यह भी कहाँ गलत
बिन पुरुष,
हूँ मैं भी अधूरी।

यह सच है
हूँ मैं अन्नपूर्णा,
अपने छोटे से आलय की।
यह भी कहाँ गलत
हैं चूल्हे की अनल के
आधार तो वही।
ऐ नारी! छोड़ो तुम,
अपूर्ण आशाओं के रुदन।
अब उठो तुम ऊँची
बन ऐसी तरंग,
छू ले जो पुरुष का
अंतर्मन…..
तब जानोगी तुम
वह गूढ़ राज़ सारे,
थे पहले कभी जो बताते नहीं।
सच ही तो है
जीवन का यह मंत्र,
न मैं तुमसे अधिक
और न तुम मुझसे कम।

जीवन रूपी गाड़ी के
हम हैं दो पहिए।
दायाँ हो तुम,
तो बायाँ हम।
कवयित्री पूजा सिंह पूर्व शिक्षिका हैं और ठाणे, महाराष्ट्र में रहती हैं।