‘इज़ लव एनफ़ सर’: एक अद्भुत प्रेम कहानी

फ़िल्म : ‘इज़ लव एनफ सर‘
निर्देशक : रोहिना गेरा
स्टार कास्ट : तिलोत्तमा शोम, विवेक गोम्बर , गीतांजलि कुलकर्णी, अनुप्रिया गोयनका, दिव्या सेठ, बचन पचेरा
रिलीजिंग प्लेटफॉर्म : नेटफ्लिक्स, अपनी रेटिंग – 4 स्टार
प्यार भरी कहानियां तो आपने कई बार देखीं होंगी पर्दे पर लेकिन क्या कोई फ़िल्म है जो जेहन में आपके कब्जा कर पाई! एक आध हैं भी तो क्या आप उन्हें दोबारा देखना चाहेंगे शायद हां शायद ना। लेकिन इस हफ्ते नेटफ्लिक्स पर एक फ़िल्म आई है ‘इज़ लव एनफ़ सर’ यह फ़िल्म वाकई बार दोबारा या जब भी आपको अपने प्रेमी की याद आएगी जरूर देखना चाहेंगे। दरअसल प्यार में कभी आपका दिल टूटा है तो यह फ़िल्म आपके लिए ही बनी है। या जब-जब टूटेगा दिल, जब-जब किसी की याद आएगी, ये फिल्म जरूर याद आएगी आपको।

लंबे वक्फे बाद एक ऐसी फिल्म देखी है, जिसके लिए कह सकता हूँ कि इस फ़िल्म में वाकई में आत्मा बसती है। वैसे ‘लंचबॉक्स’ , ‘फोटोग्राफ’ टाइप कुछ समय पहले रिलीज हुई फ़िल्म देखने वाले भी कम नहीं थे। यह फ़िल्म कला सिनेमा का बेहतरीन नमूना पेश करती है और इतने सॉफ्ट तरीके से आपके जेहन में बस जाती है कि आपको पता ही नहीं चलता।

सबसे पहले 2018 में पहली बार ये फिल्म कांस फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई थी। इसके बाद पिछले साल नवंबर में भारत में रिलीज हुई। और अब नेटफ्लिक्स पर आई है। रोहिना गेरा इसकी फिल्म निर्देशिका है। भारतीय सिनेमा में वैसे भी कम ही फ़िल्म निर्देशिकाएँ हुई हैं जिन्होंने अच्छी फिल्में दीं। रोहिना इससे पहले कुछ फिल्मों की कहानियां भी लिख चुकी हैं। लेकिन बतौर डायरेक्टर ये उनकी पहली फिल्म है। इसके पहले उन्होंने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई थी- ‘What’s Love Got to Do with It ?’
फ़िल्म की कहानी में एक लड़की है रत्ना जो विधवा है और और एक लड़का है अश्विन जिसके यहां वह काम वाली बाई है। अश्विन लेखक है अधूरा सा जिसके कुछ लेख यहां वहां छपते रहते हैं लेकिन वह मुक्कमल लेखक बनना चाहता था हुआ ये कि भाई की बीमारी की वजह से उसे न्यूयॉर्क से वापस लौटना पड़ा। मुंबई के एक पॉश इलाके में उसका घर है, जहां से समंदर दिखता है। रत्ना महाराष्ट्र के एक सुदूर छोटे से गांव की लड़की है, जो शादी के चंद महीने बाद ही विधवा हो गई थी। घर पूरी तरह रत्ना के हाथ में है। इधर अश्विन की शादी भी होने से पहले ही टूट जाती है। सबीना नाम की कोई लड़की थी, जो फ़िल्म की स्क्रीन पर तो दिखती नहीं, लेकिन उसका जिक्र है। शादी टूटने के बाद अश्विन थोड़ा शांत और उदास सा रहने लगता है। हमेशा चुप रहने और सिर झुकाकर अपना काम करने वाली रत्ना एक सुबह अश्विन को अपनी कहानी सुनाती है कि कैसे गांव में बहुत कम उम्र में उसकी शादी हो गई थी और शादी के चार महीने बाद ही वह विधवा हो गई। वो टेलरिंग भी सीखती है। फ़िल्म के अंत में रत्ना कहती है, “जीवन कभी रुकता नहीं।”

धीरे-धीरे उस घर में अकेले रह रहे उन दोनों के बीच एक तार सा जुड़ता चला उनके सम्बन्धों में ज्यादा शब्द नहीं है उस सम्बन्ध को बयां करने में उनकी सिर्फ आंखें, चेहरे की भाव-भंगिमाएं बोलती हैं। अश्विन भलमनसाहत है शायद यह भी वजह है कि फ़िल्म को एक बार देख लेने से मन नहीं भरता। यही वजह है कि जब यह खत्म होती है तो लगता है अरे खत्म क्यों हो गई अभी तो और बहुत कहना, दिखाना बाकी था।
फ़िल्म तकनीकी रूप से कसावट लिए हुए है। हरेक फ्रेम, शब्द बारीकी से गढ़े गए हैं। इस फ़िल्म को उन शुमार फिल्मों में गिना जाना चाहिए जिन्हें हमें जरूर देखना चाहते हैं। हम सब मुहब्बत पाना चाहते हैं लेकिन जो नियम क़ायदे , कानून समाज ने बनाए हैं उसके तहत। क्यों नहीं दो लोग जो प्यार में हैं वो साथ रह सकते हैं? यही बड़ी वजह है कि लोग अनचाहे रिश्तों में घुट-घुट कर जी रहें हैं जिसके साथ जीना चाहते हैं उसके लिए खुल कर बोल नहीं पाते।
इस फ़िल्म के किरदार कम हैं तो संवाद उससे भी कम और यही इसकी खासियत भी है। गीत-संगीत लुभावना है। सेट,लोकेशन सब रियलिस्ट हैं। अभिनय के लिए तिलोत्तमा शोम , विवेक गोम्बर के तालियां गीतांजलि कुलकर्णी, अनुप्रिया गोयनका, दिव्या सेठ, बचन पचेरा का काम भी अच्छा रहा। सबसे बड़ी बात प्रेम को प्रेम के तरीके से दिखाया जाना इस बात का गवाह बनेगा कि यह फ़िल्म बरसों तक याद की जाएगी।

तेजस पूनियां, फिल्म समीक्षक, संपर्क – 9166373652, ईमेल- tejaspoonia@gmail.com.