रिव्यू : फीकी है ये इंदु की जवानी- तेजस पूनिया

स्टार्स: कियारा आडवाणी, आदित्य सील, मल्लिका दुआ, मनीष चौधरी
निर्देशक : अबीर सेनगुप्ता
रिलीजिंग प्लेटफार्म : नेटफ्लिक्स रेटिंग: डेढ़ स्टार
डेटिंग एप्स आज कल जिंदगी का एक अहम हिस्सा सा बन गया है। कियारा आडवाणी की फ़िल्म इंदु की जवानी भी इन्हीं डेटिंग एप्स के मुद्दे को उठाती है। हालांकि फ़िल्म डेटिंग एप्स के अलावा और भी कई मुद्दों पर भी झांकती है लेकिन फीके अंदाज में। फ़िल्म की शुरुआत होती है दिल्ली-गाजियाबाद सीमा पर पुलिस द्वारा चेक पोस्ट पर एक ब्लैक स्कॉर्पियो कार को रोकने की कोशिश के साथ। अविनाश निगम (इकबाल खान) के नेतृत्व वाला पुलिस का जत्था उस कार को एक घर के बाहर देखता है । आतंकवादी कहीं नहीं दिखाई देते। लेकिन पुलिस को अंदर विस्फोटक सामग्री जरूर मिलती है। जल्द ही पुलिस उस कार, एक पाकिस्तानी और एक दूसरे व्यक्ति को ढूंढना शुरू कर देती है।

दूसरी ओर इंदिरा गुप्ता उर्फ इंदु (कियारा आडवाणी) अपने प्रेमी सतीश (राघव राज कक्कड़) के साथ उहापोह और असमंजस भरा समय बिता रही है। सतीश इंदु के साथ सोना चाहता है। लेकिन जब इंदु उसे मना कर देती है और फिर बाद में उसके सीधा घर पहुंच जाती है तो रात को वह उसे एक लड़की अलका (लीशा बजाज) के साथ देख लेती है। इसके बाद इंदु सतीश से ब्रेकअप कर लेती है। इधर अलका की शादी में इंदु को किट्टू (शिवम कक्कड़) ही नही बल्कि प्रेम चाचा (राकेश बेदी), रंजीत चाचा (राजेंद्र सेठी) और प्राण चाचा (चितरंजन त्रिपाठी) जैसे बूढ़े लोग भी उसे पसंद करते हैं। कुल मिलाकर पूरे मोहल्ले में इंदु की जवानी को लपटने के लिए हर कोई तैयार बैठा है। फिर जब इंदु के भाई के एडमिशन को लेकर पूरा परिवार बाहर चला जाता है तो इंदु घर में अकेली पड़ जाती है। ऐसे में अकेली पड़ी इंदु सोनल के आईडिया मान लेती है और डेटिंग एप डिन्डर का इस्तेमाल करती है ।

इसी एप पर इंदु को समर (आदित्य सील) मिलता है आपसी बातचीत के बाद इंदु उसे शाम को अपने घर बुलाती है। उसी दिन उसे प्रेम चाचा, रंजीत चाचा और प्राण चाचा से पता चलता है कि पाकिस्तान का एक आतंकवादी गाजियाबाद में घूम रहा है। शाम को समर इंदु के घर पर पहुँचता है। समर पूरी तरह से एक शील स्वभाव वाले लड़के की भूमिका अदा करता है। इंदु उसके साथ अंतरंग होने का प्रयास भी करती है लेकिन घबरा जाती है। तभी समर का पासपोर्ट उसकी जैकेट से गिर जाता है। यहां उसे पता चलता है कि समर पाकिस्तानी है ! ये देखकर वह डर जाती है। इसके बाद आगे क्या होता है यह बाकी फ़िल्म देखने के बाद ही आपको पता चलेगा।

अबीर सेनगुप्ता की कहानी मनोरंजक जरूर है। लेकिन इंदु की जवानी को भुना पाने में नाकाम साबित होती है। फ़िल्म की कहानी उसका निर्देशन सब कुछ हाथ से रेत की तरह फिसलता हुआ सा नजर आता है। उन्होंने जिस तरह से उन्होंने डेटिंग एप्स और पूर्वाग्रहों तथा छोटे शहरों की मानसिकता, आतंकवाद और भारत बनाम पाकिस्तान की बहस को एक ही फिल्म में एक साथ पिरोने की कोशिश की है उसमें वे नाकाम साबित होते हैं। इसके अलावा ‘झंडा गाड़ दिया’ डायलॉग बात बात में दोहराया जाता है जो परेशान सा करने लगता है। अबीर सेनगुप्ता का निर्देशन कसा हुआ नही है। हालांकि कहीं-कहीं उनकी क्रिएटिविटी भी दिखाई देती है।

फ़िल्म में अभिनय की बात करें तो कियारा आडवाणी ठीक लगी हैं। उनके अंदर एक्टिंग का कीड़ा है जो नजर भी आता है। आदित्य सील भी अपने किरदार के साथ न्याय करते नजर आते हैं। इसके अलावा मल्लिका दुआ , इकबाल खान , राघव राज कक्कड़, शिवम कक्कड़ फिट नहीं बैठते। फ़िल्म का गीत संगीत भी उम्दा किस्म का नहीं है लेकिन ‘हसीना पागल दीवानी’ पैर थिरकाता है। इसके अलावा कोई भी गाना नहीं जंचता। वसंत की सिनेमाटोग्राफी में कोई कमी नहीं है। यह फ़िल्म का प्लस पॉइंट कहा जा सकता है।
लेखक- तेजस पूनिया , शिक्षा- शिक्षा स्नातक (बीएड), 177 गणगौर नगर , गली नँबर 3, नजदीक आर एल जी गेस्ट हाउस, संपर्क – 9166373652
ईमेल- tejaspoonia@gmail.com
I will right away take hold of your rss as I can not find your email subscription linkor e-newsletter service. Do you’ve any? Please allow me recognise in order that I could subscribe.Thanks.
Say, you got a nice article post.Thanks Again.
Wow, great blog.Much thanks again.
Appreciate you sharing, great article.Much thanks again. Really Cool.
This is my first time go to see at here and i am really pleassant to read everthing at alone place.
Thank you for the good writeup. It actually was a amusement account it. Look complicated to far delivered agreeable from you! However, how could we keep up a correspondence?
Hi there colleagues, its great piece of writing about teachingand entirely defined, keepit up all the time.