संधि विच्छेद- अरुण कुमार

‘संधि’ शब्द दो शब्दों के मिलने से बना है- सम् + धि। संधि का अर्थ होता है ‘मिलना ‘। जब दो शब्द आपस में मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे ‘संधि’ कहते हैं। संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह किया जा सकता है. संधि के तहत बने शब्द को तोड़कर अलग करने की प्रक्रिया को संधि विच्छेद कहते हैं। अथार्त जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनाते हैं तब जो परिवर्तन होता है , उसे संधि कहते हैं।
हिमालय = हिम + आलय , सत् + आनंद = सदानंद।

संधि के प्रकार
संधि तीन प्रकार की होती है- स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि
1. स्वर संधि- जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है और उसके बाद शब्द में जो परिवर्तन होता है उसे ‘स्वर संधि’ कहते हैं। हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह है और शेष सभी अक्षर व्यंजन हैं। जब पहले शब्द की अंतिम ध्वनि स्वर हो और दूसरे शब्द की अंतिम ध्वनि भी स्वर हो और ये दोनों स्वरों के मिलने से एक नया शब्द बनता हो तो उसे स्वर संधि कहते हैं. जैसे-
विद्या + आलय = विद्यालय
देव+ आलय- देवालय
स्वर संधि पांच प्रकार की होती हैं – दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण संधि, अयादि संधि
(क) दीर्घ संधि- जब (अ, आ ) के साथ ( अ , आ ) का मेल होकर ‘आ’ बनता है , जब ( इ , ई ) के साथ ( इ , ई ) मिलकर ‘ई’ बनती है और जब ( उ , ऊ ) के साथ ( उ , ऊ ) मिलता है तो ‘ऊ’ बन जाता है। इसे दीर्घ संधि कहते हैं. जैसे-
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
रवि + इंद्र = रविन्द्र
गिरी +ईश = गिरीश
मुनि + ईश =मुनीश
मुनि + इंद्र = मुनींद्र
भानु + उदय = भानूदय
2. गुण संधि- जब ( अ , आ ) के साथ ( इ , ई ) के मिलने से ‘ ए’ बनता है , जब ( अ , आ ) के साथ ( उ , ऊ ) के मिलने से ‘ओ’ बनता है और जब ( अ , आ ) के साथ ( ऋ ) के मिलने से ‘ अर’ बनता है तो उसे गुण संधि कहते हैं। जैसे-
नर + इंद्र + नरेंद्र
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
भारत + इंदु = भारतेन्दु
देव + ऋषि = देवर्षि
सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण
3. वृद्धि संधि- जब ( अ , आ ) के साथ ( ए , ऐ ) के मिलने से ‘ ऐ ‘ बनता है और जब ( अ , आ ) के साथ ( ओ , औ ) के मिलने से ‘औ’ बनता है। उसे ‘वृद्धि संधि’ कहते हैं। जैसे-
मत+ ऐक्य- मतैक्य
एक + एक- एकैक
सदा + एव = सदैव
4. यण संधि- जब ( इ , ई ) के साथ कोई अन्य स्वर के मिलने से ‘य’ बनता है, जब (उ , ऊ) के साथ किसी अन्य स्वर के मिलने से ‘ व’ बनता है और जब ( ऋ ) के साथ किसी अन्य स्वर के मिलने से ‘र’ बन जाता है तो उसे ‘यण संधि’ कहते हैं. यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त्त पद होते हैं-
य से पहले आधा व्यंजन होना चाहिए।
व् से पहले आधा व्यंजन होना चाहिए।
शब्द में ‘त्र’ होना चाहिए।
यण संधि में एक शर्त यह भी है कि ‘य’ और ‘त्र’ में स्वर होना चाहिए और उसी से बने हुए शुद्ध व् सार्थक स्वर को + के बाद लिखें। उसे ‘यण संधि’ कहते हैं। जैसे-
इति + आदि = इत्यादि
परी + आवरण = पर्यावरण
अनु + अय = अन्वय
सु + आगत = स्वागत
अभी + आगत = अभ्यागत
5. अयादि संधि- जब ( ए, ऐ, ओ, औ ) के साथ किसी अन्य स्वर के मिलने से अय, आय, अव, आव, बन जाता है तो उसे अयादि संधि कहते हैं. अयादि संधि में ‘ ए – अय ‘ में , ‘ ऐ – आय ‘ में , ‘ ओ – अव ‘ में, ‘ औ – आव’ में परिवर्तित हो जाता है। य , व् से पहले व्यंजन पर अ, आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है. जैसे-
ने + अन = नयन
नौ + इक = नाविक
भो + अन = भवन
पो + इत्र = पवित्र
2. व्यंजन संधि-
जब पहले शब्द की अंतिम ध्वनि व्यंजन हो और वह दूसरे शब्द के पहली ध्वनि जो व्यंजन भी हो सकती है या स्वर भी दोनों के मिलने से जो परिवर्तन होता है, उसे ‘व्यंजन संधि’ कहते हैं। जैसे-
दिक् + अम्बर = दिगम्बर
अभी + षेक = अभिषेक
व्यंजन संधि तेरह प्रकार के होते हैं अर्थात व्यंजन संधि बनाने के तेरह नियम हैं-
(1) जब किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से या य्, र्, ल्, व्, ह से या किसी स्वर से हो जाये तो क् को ग् , च् को ज् , ट् को ड् , त् को द् , और प् को ब् में बदल दिया जाता है अगर स्वर मिलता है तो जो स्वर की मात्रा होती है वह हलन्त वर्ण में लग जाएगी लेकिन अगर व्यंजन का मिलन होता है तो वह हलन्त ही रहेंगे। जैसे-
क् के ग् में बदलने के उदहारण –
दिक् + अम्बर = दिगम्बर
दिक् + गज = दिग्गज
वाक् +ईश = वागीश
च् के ज् में बदलने के उदहारण-
अच् +अन्त = अजन्त
आच् + आदि = आजादी
ट् के ड् में बदलने के उदहारण-
षट् + आनन = षडानन
षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
षट् + दर्शन = षड्दर्शन
षट् + विकार = षड्विकार
त् के द् में बदलने के उदहारण-
तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
सदाशय = सत् + आशय
तदनन्तर = तत् + अनन्तर
उद्घाटन = उत् + घाटन
जगदम्बा = जगत् + अम्बा
प् के ब् में बदलने के उदहारण-
अप् + द = अब्द
अब्ज = अप् + ज
(2) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन ‘न’ या ‘म’ वर्ण ( ङ, ञ ज, ण, न, म ) के साथ हो तो क् को ङ्, च् को ज्, ट् को ण्, त् को न्, तथा प् को म् में बदल दिया जाता है। जैसे-
क् के ङ् में बदलने के उदहारण-
वाक् + मय = वाङ्मय
दिक् + मण्डल = दिङ्मण्डल
प्राक् + मुख = प्राङ्मुख
ट् के ण् में बदलने के उदहारण-
षट् + मास = षण्मास
षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
षण्मुख = षट् + मुख
त् के न् में बदलने के उदहारण-
उत् + नति = उन्नति
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
उत् + मूलन = उन्मूलन
प् के म् में बदलने के उदहारण-
अप् + मय = अम्मय
(3) जब त् का मिलन ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व से या किसी स्वर से हो तो द् बन जाता है। म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘ म’ की जगह पर मिलने वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जाता है।
म् + क ख ग घ ङ के उदहारण :-
सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
सम् + ख्या = संख्या
सम् + गम = संगम
शंकर = शम् + कर
म् + च, छ, ज, झ, ञ के उदहारण :-
सम् + चय = संचय
किम् + चित् = किंचित
सम् + जीवन = संजीवन
म् + ट, ठ, ड, ढ, ण के उदहारण-
दम् + ड = दण्ड/दंड
खम् + ड = खण्ड/खंड
म् + त, थ, द, ध, न के उदहारण –
सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
किम् + नर = किन्नर
सम् + देह = सन्देह
म् + प, फ, ब, भ, म के उदहारण –
सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण
सम् + भव = सम्भव/संभव
त् + ग , घ , ध , द , ब , भ ,य , र , व् के उदहारण-
सत् + भावना = सद्भावना
जगत् + ईश =जगदीश
भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
तत् + रूप = तद्रूपत
सत् + धर्म = सद्धर्म
(4) त् के साथ च् या छ् मिलने पर च, ज् या झ् मिलने पर ज्, ट् या ठ् मिलने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् बन जाता है। म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर ‘म्’ की जगह पर अनुस्वार ही लगता है।
म + य , र , ल , व् , श , ष , स , ह के उदहारण-
सम् + रचना = संरचना
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + वत् = संवत्
सम् + शय = संशय
त् + च , ज , झ , ट , ड , ल के उदहारण –
उत् + चारण = उच्चारण
सत् + जन = सज्जन
उत् + झटिका = उज्झटिका
तत् + टीका =तट्टीका
उत् + डयन = उड्डयन
उत् +लास = उल्लास
(5) जब त् का मिलन श् से हो तो त् को च् और श् को छ् में बदल दिया जाता है। जब त् या द् के साथ च या छ का मिलन होता है तो त् या द् की जगह पर च् बन जाता है। जैसे-
उत् + चारण = उच्चारण
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
उत् + छिन्न = उच्छिन्न
त् + श् के उदहारण-
उत् + श्वास = उच्छ्वास
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
(6) जब त् का मिलन ह् से हो तो त् को द् और ह् को ध् में बदल दिया जाता है। त् या द् के साथ ज या झ का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ज् बन जाता है। जैसे-
सत् + जन = सज्जन
जगत् + जीवन = जगज्जीवन
वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार
त् + ह के उदहारण :-
उत् + हार = उद्धार
उत् + हरण = उद्धरण
तत् + हित = तद्धित
(7) स्वर के बाद यदि ‘छ्’ वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। त् या द् के साथ ट या ठ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ट् बन जाता है। जब त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ की मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ‘ड्’ बन जाता है। जैसे-
तत् + टीका = तट्टीका
वृहत् + टीका = वृहट्टीका
भवत् + डमरू = भवड्डमरू
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, + छ के उदहारण –
स्व + छंद = स्वच्छंद
आ + छादन =आच्छादन
संधि + छेद = संधिच्छेद
अनु + छेद =अनुच्छेद
(8) अगर म् के बाद क् से लेकर म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। त् या द् के साथ जब ल का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ‘ल्’ बन जाता है। जैसे-
उत् + लास = उल्लास
तत् + लीन = तल्लीन
विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा
म् + च् , क, त, ब , प के उदहारण –
किम् + चित = किंचित
किम् + कर = किंकर
सम् +कल्प = संकल्प
सम् + चय = संचयम
सम +तोष = संतोष
सम् + बंध = संबंध
सम् + पूर्ण = संपूर्ण
(9) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। त् या द् के साथ ‘ह’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर द् तथा ह की जगह पर ध बन जाता है। जैसे-
उत् + हार = उद्धार/उद्धार
उत् + हृत = उद्धृत/उद्धृत
पद् + हति = पद्धति
म् + म के उदाहरण :-
सम् + मति = सम्मति
सम् + मान = सम्मान
(10) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन आने पर म् का अनुस्वार हो जाता है। ‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर ‘च्’ तथा ‘श’ की जगह पर ‘छ’ बन जाता है। जैसे-
उत् + श्वास = उच्छ्वास
उत् + शृंखल = उच्छृंखल
शरत् + शशि = शरच्छशि
म् + य, र, व्,श, ल, स, के उदाहरण –
सम् + योग = संयोग
सम् + रक्षण = संरक्षण
सम् + विधान = संविधान
सम् + शय = संशय
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + सार = संसार
(11) ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। किसी भी स्वर के साथ ‘छ’ के मिलन पर स्वर तथा ‘छ’ के बीच ‘च्’ आ जाता है। जैसे-
आ + छादन = आच्छादन
अनु + छेद = अनुच्छेद
शाला + छादन = शालाच्छादन
स्व + छन्द = स्वच्छन्द
र् + न, म के उदहारण –
परि + नाम = परिणाम
प्र + मान = प्रमाण
(12) स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष बना दिया जाता है। जैसे-
वि + सम = विषम
अभि + सिक्त = अभिषिक्त
अनु + संग = अनुषंग
भ् + स् के उदहारण :-
अभि + सेक = अभिषेक
नि + सिद्ध = निषिद्ध
वि + सम + विषम
(13) यदि किसी शब्द में कही भी ऋ, र या ष हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी ‘न’ हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर, क, ख ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व में से कोई भी वर्ण हो तो सन्धि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जब द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह का मिलन होता है तब द की जगह पर त् बन जाता है। जैसे-
राम + अयन = रामायण
परि + नाम = परिणाम
नार + अयन = नारायण
संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
तद् + पर = तत्पर
सद् + कार = सत्कार
विसर्ग संधि-
विसर्ग के बाद जब स्वर या व्यंजन आ जाये तब जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं। जैसे-
मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
नि:+अक्षर = निरक्षर
नि: + पाप =निष्पाप
विसर्ग संधि के 10 नियम होते हैं –
(1) विसर्ग के साथ च या छ के मिलन से विसर्ग के जगह पर ‘श्’ बन जाता है। विसर्ग के पहले अगर ‘अ’ और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे , पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है। जैसे-
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
अधः + गति = अधोगति
मनः + बल = मनोबल
निः + चय = निश्चय
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
निः + छल = निश्छल
विच्छेद-
तपश्चर्या = तपः + चर्या
अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना
हरिश्चन्द्र = हरिः + चन्द्र
अन्तश्चक्षु = अन्तः + चक्षु
(2) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का ‘र’ या ‘र्’ हो जाता है। विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है।
दुः + शासन = दुश्शासन
यशः + शरीर = यशश्शरीर
निः + शुल्क = निश्शुल्क
विच्छेद-
निश्श्वास = निः + श्वास
चतुश्श्लोकी = चतुः + श्लोकी
निश्शंक = निः + शंक
निः + आहार = निराहार
निः + आशा = निराशा
निः + धन = निर्धन
(3) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का ‘श’ हो जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है।
धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
चतुः + टीका = चतुष्टीका
चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
निः + चल = निश्चल
निः + छल = निश्छल
दुः + शासन = दुश्शासन
(4) विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग ‘स्’ बन जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा। जैसे-
निः + कलंक = निष्कलंक
दुः + कर = दुष्कर
आविः + कार = आविष्कार
चतुः + पथ = चतुष्पथ
निः + फल = निष्फल
विच्छेद-
निष्काम = निः + काम
निष्प्रयोजन = निः + प्रयोजन
बहिष्कार = बहिः + कार
निष्कपट = निः + कपट
नमः + ते = नमस्ते
निः + संतान = निस्संतान
दुः + साहस = दुस्साहस
(5) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा।
अधः + पतन = अध: पतन
प्रातः + काल = प्रात: काल
अन्त: + पुर = अन्त: पुर
वय: + क्रम = वय: क्रम
विच्छेद-
रज: कण = रज: + कण
तप: पूत = तप: + पूत
पय: पान = पय: + पान
अन्त: करण = अन्त: + करण
अपवाद-
भा: + कर = भास्कर
नम: + कार = नमस्कार
पुर: + कार = पुरस्कार
श्रेय: + कर = श्रेयस्कर
बृह: + पति = बृहस्पति
पुर: + कृत = पुरस्कृत
तिर: + कार = तिरस्कार
निः + कलंक = निष्कलंक
चतुः + पाद = चतुष्पाद
निः + फल = निष्फल
(6) विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा।
अन्त: + तल = अन्तस्तल
नि: + ताप = निस्ताप
दु: + तर = दुस्तर
नि: + तारण = निस्तारण
विच्छेद-
निस्तेज = निः + तेज
नमस्ते = नम: + ते
मनस्ताप = मन: + ताप
बहिस्थल = बहि: + थल
निः + रोग = निरोग
निः + रस = नीरस
(7) विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है।
नि: + सन्देह = निस्सन्देह
दु: + साहस = दुस्साहस
नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
दु: + स्वप्न = दुस्स्वप्न
विच्छेद
निस्संतान = नि: + संतान
दुस्साध्य = दु: + साध्य
मनस्संताप = मन: + संताप
पुनस्स्मरण = पुन: + स्मरण
अंतः + करण = अंतःकरण
(8) यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’ की हो जायेगी।
नि: + रस = नीरस
नि: + रव = नीरव
नि: + रोग = नीरोग
दु: + राज = दूराज
विच्छेद
नीरज = नि: + रज
नीरन्द्र = नि: + रन्द्र
चक्षूरोग = चक्षु: + रोग
दूरम्य = दु: + रम्य
(9) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा। जैसे-
अत: + एव = अतएव
मन: + उच्छेद = मनउच्छेद
पय: + आदि = पयआदि
तत: + एव = ततएव
(10) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ, ग, घ, ड॰, ´, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा। जैसे-
मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा
सर: + ज = सरोज
वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
यश: + धरा = यशोधरा
मन: + योग = मनोयोग
अध: + भाग = अधोभाग
तप: + बल = तपोबल
मन: + रंजन = मनोरंजन
विच्छेद
मनोनुकूल = मन: + अनुकूल
मनोहर = मन: + हर
तपोभूमि = तप: + भूमि
पुरोहित = पुर: + हित
यशोदा = यश: + दा
अधोवस्त्र = अध: + वस्त्र
अपवाद
पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण
पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण
अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय
अन्त: + यामी = अन्तर्यामी
लेखक- डॉ अरुण कुमार, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, लक्ष्मीबाई महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय. सम्पर्क- lokmanchpatrika@gmail.com, 8178055172, 09868719955
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