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प्रयुक्ति और पारिभाषिक शब्दावली- अरुण कुमार

प्रयुक्ति

किसी विषय से सम्बन्धित विशेष प्रकार की भाषा को ‘प्रयुक्ति’ कहा जाता है। प्रयुक्ति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें विषय से जुड़े हुए शब्दों का विशेष अर्थ होता है। इन शब्दों को ‘ पारिभाषिक शब्द ’ कहते हैं। प्रयुक्ति का सम्बन्ध भाषा से है और उनमें जो विशेष शब्दों का प्रयोग किया जाता है उन्हें पारिभाषिक शब्द कहते हैं. विभिन्न विषयों जैसे प्रशासन, विज्ञान, संचार, विधि, प्रौद्योगिकी, कम्प्यूटर, मानविकी आदि में पारिभाषिक  शब्दों का प्रयुक्ति के रूप में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। जब किसी विषय का अनुवाद दूसरी भाषा में किया जाता है तो इसमें पारिभाषिक शब्दों के अनुवाद की चुनौती हमारे सामने आती है।

पारिभाषिक शब्द अंग्रेज़ी के ‘टेक्निकल वर्ड’ का हिन्दी पर्याय है। अंग्रेज़ी का ‘टेक्निकल’ शब्द ग्रीक भाषा के ‘टेक्निकोई’ ( ऑफ आर्ट अर्थात कला का या कला विषयक ) शब्द से बना है। ‘टेक्ने’ का तात्पर्य है- कला तथा शिल्प। लैटिन भाषा  में ‘टेक्सेर’ शब्द बुनना या बनाना के अर्थ में प्रचलित है। इस प्रकार ग्रीक तथा लैटिन शब्दों के मेल से बने अंग्रेज़ी के ‘टेक्निकल’ शब्द का अर्थ है- वह शब्द जो किसी निर्मित या खोजी गई वस्तु या विचार को प्रकट करता है। इस प्रकार पारिभाषिक शब्द उसे कहते हैं जो ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में किसी खोजी गई वस्तु या विचार को प्रकट करते हैं। ये शब्द किसी विशेष क्षेत्र में किसी विशिष्ट तथा निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होते हैं।

पारिभाषिक शब्द विभिन्न विज्ञानों और शास्त्रों में प्रयुक्त होते हैं। अपने विषय के अनुरूप ही उन्हें पारिभाषित किया जाता है। उनके अर्थ सुनिश्चित और स्पष्ट होते हैं। पारिभाषिक शब्दों में न तो अव्याप्ति का दोष होता है और न अतिव्याप्ति का। अर्थात ये शब्द अपनी अर्थ-परिधि से न तो अधिक अर्थ व्यक्त करते हैं और न ही कम। ये शब्द एकार्थी होते हैं और इनके संदिग्धार्थी होने की भी कोई संभावना नहीं रहती है। पारिभाषिक शब्दों की एक अन्य विशेषता यह है कि एक ही विज्ञान या शास्त्र में एक ही विचार या सिद्धांत के लिए एक ही शब्द होता है।

पारिभाषिक शब्दावली की परिभाषाएं –

कई विद्वानों ने पारिभाषिक शब्दावली की अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं. उनमें से कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गईं परिभाषाएं इस प्रकार हैं- 

डॉ रघुवीर: जिन शब्दों की सीमा बांध दी जाती है, ये पारिभाषिक शब्द होते हैं और जिनकी सीमा नहीं बंधी जाती है वे साधारण शब्द होते हैं।

भोलानाथ तिवारी: पारिभाषिक शब्द ऐसे शब्दों को कहते हैं जो रसायन, भौतिक, दर्शन, राजनीति आदि विज्ञानों या शास्त्रों के शब्द होते हैं तथा जो अपने-अपने क्षेत्र में विशिष्ट अर्थ में सुनिश्चित रूप से पारिभाषित होते हैं।

डॉ विनोद गोदरे: किसी विशिष्ट ज्ञान शाखा की विशिष्ट अभिव्यक्त के लिए प्रयुक्त विशिष्ट शब्द पारिभाषिक शब्द कहलाता है।

रेमंड हाउस: विज्ञान अथवा कला जैसे विशिष्ट विषयों की तकनीकी अभिव्यक्ति हेतु किसी निश्चित अथवा विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त शब्द पारिभाषिक शब्द कहलाते हैं।

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि ” जो शब्द सामान्य व्यवहार की भाषा में प्रयुक्त न होकर ज्ञान-विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में विषय एवं संदर्भ के अनुसार निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें पारिभाषिक शब्द कहते हैं।

ऐसे पारिभाषिक शब्दों के समूह को ‘पारिभाषिक शब्दावली’ या ‘तकनीकी शब्दावली’ कहते हैं।

पारिभाषिक शब्दावली की विशेषताएं –

1. पारिभाषिक शब्दों के अर्थ स्पष्ट, सुबोध तथा निश्चित होते हैं। ऐसे शब्द अर्थ, अर्थ-विस्तार और अर्थ-संकोच से हमेशा मुक्त होते हैं।

2. पारिभाषिक शब्द उच्चारण की दृष्टि से सरल होते हैं ताकि पाठक को उन्हें बोलने में आसानी हो.

3. वर्तनी की दृष्टि से भी पारिभाषिक शब्द आसन होते हैं.

4. प्रत्येक पारिभाषिक शब्द की अपनी स्वतंत्र सत्ता तथा अर्थवत्ता होती है। सभी पारिभाषिक शब्दों का अपना अलग अस्तित्व होता है।

5. पारिभाषिक शब्द ज्ञान, क्षेत्र या विषयवस्तु से सम्बद्ध संकल्पनाओं के अनुरूप होते हैं।

6. समान पारिभाषिक शब्द एकरूपता युक्त होते हैं।

7. पारिभाषिक शब्दों का आकार यथासंभव छोटा होता है ताकि प्रयोग करने वालों को प्रयोग करने में सुविधा हो।

8. पारिभाषिक में उपसर्ग, प्रत्यय या अन्य उपयुक्त शब्द जोड़कर अन्य शब्द बनाने की गुंजाइश रहती है। जैसे सेक्रेटरी- सचिव, उप सचिव, सह सचिव, संयुक्त सचिव आदि।

8. किसी अन्य भाषा से ग्रहण किए गए पारिभाषिक शब्द को अनुकूलन की प्रक्रिया से ग्राहक भाषा की प्रकृति एवं प्रव्रिटी के अनुरूप ढाल लिया जाता है। जैसे अकेडमी- अकादमी, हॉस्पिटल- अस्पताल

9. सम्बद्ध पारिभाषिक शब्दों का निर्माण यथासंभव तथा यथास्थिति एक ही मूल शब्द से किया जाता है ताकि उनमें अर्थ की निश्चितता, स्पष्टता तथा सुबोधता बनी रहे। जैसे- नियम, अधिनियम, विनियम

10. पारिभाषिक शब्दावली में संक्षिप्तता के साथ-साथ सांकेतिकता भी होती है। ये शब्द किसी भी रूप या भाव के वर्णनात्मक या शब्दात्मक संकेत अर्थ ग्रहण के माध्यम बने रहते । दिल्ली विकास प्राधिकरण- डीडीए, 

11. पारिभाषिक शब्द परिभाषित होते हैं। ऐसे शब्दों को उनकी संकल्पना के अनुरूप व्याख्या या परिभाषा देते हुए समझाया जाता है- ताप, गुणांक, प्रतिभूमि, घनत्व, गुण-सूत्र

12. प्रत्येक पारिभाषिक शब्द में कोई विशिष्ट विचार, भाव या संकल्पना अंतर्निहित रहती है जिसे व्याख्या या परिभाषा के माध्यम से स्पष्ट करना आवश्यक है ताकि शब्द के प्रयोग में संदिग्धता न हो। जैसे सॉफ्टवेयर, कार्बनिक, अंतरिक्ष, नाभिकीय 

13. पारिभाषिक शब्द हमारे दैनिक बोलचाल की भाषा में प्रयोग में नहीं लाए जाते क्योंकि ऐसे शब्दों से सम्बद्ध विचार, भाव, संकल्पनाएँ सामान्य व्यवहार में प्रयुक्त नहीं होती। 

14. कुछ पारिभाषिक शब्द दो या दो से अधिक क्षेत्रों में अलग-अलग अर्थ व्यक्त करते हैं। जैसे- कल्चर- संस्कृति ( मानविकी में ) कृषि ( कृषि विज्ञान में ) अक्का कल्चर- जल कृषि, सीरी कल्चर- रेशम कीट पालन। सिक्युरिटी- सुरक्षा ( सैन्य विज्ञान में ) सिक्युरिटी- प्रतिभूति/जमानत ( बैंकिंग में ) 

15. कुछ पारिभाषिक शब्दों का आशय गूढ़ होने के कारण दुरूह होता है, जिसे परम्परा तथा प्रयोग से ही सही-सही समझा जा सकता है। जैसे- काव्यशास्त्र का चित्र तुरुग न्याय शब्द, नाट्यशास्त्र का रंगकर्मी शब्द, दर्शनशास्त्र का अद्वैत, कुंडलिनी, माया, ब्रह्म शब्द।

16. पारिभाषिक शब्द दो या अधिक संकल्पनाओं की सूक्ष्मता को सही अर्थ में सटीक अभिव्यक्ति प्रदान करता है। हीट- ताप, टेम्प्रेचर- तापमान, स्पीड- गति, वेलोसिटी- वेग।

17. किसी एक विशिष्ट ज्ञान क्षेत्र के एक पारिभाषिक शब्द के स्थान पर उसका कोई दूसरा पर्यायवाची शब्द प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है।

18. अधिकांश पारिभाषिक शब्दों का निर्माण कृत्रिम होता है। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में नए-नए आविष्कारों और खोजों के कारण उनकी अभिव्यक्ति के लिए नए शब्दों के निर्माण की आवश्यकता पड़ती है। ये शब्द विषय, स्थिति और सन्दर्भ के अनुरूप निर्मित किए जाते हैं। कभी-कभी खोजकर्ता वैज्ञानिकों तथा प्रतीकों के आधार पर भी पारिभाषिक शब्द बनाए जाते हैं। जैसे- पाई, म्यू, जुल, डार्विनिज्म, मार्क्सिज्म, फासिस्ट, रामन प्रभाव आदि।

पारिभाषिक शब्दावली की निर्माण प्रक्रिया- 

हिन्दी भाषा न केवल साहित्य का माध्यम है बल्कि विज्ञान, प्रशासन आदि विषयों की अभिव्यक्ति का भी सशक्त माध्यम है। भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास के साथ ही हिन्दी भाषा में पारिभाषिक शब्दावली की आवश्यकता महसूस की गई। इसके परिणामस्वरूप हिन्दी में विज्ञान, प्रशासन, विधि, बैंकिंग, तकनीक और अन्य विषयों से संबंधित पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण का काम शुरू हुआ। पारिभाषिक शब्दों के निर्माण के कारण विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिन्दी के प्रयोग को गति मिली है।  

हिन्दी में पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण की परंपरा पुरानी है. सन 1707 में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रेरणा से रघुनाथ पंत द्वारा ‘राजकोश’ तैयार किया गया था जिसमें कुछ पारिभाषिक शब्दों के निर्माण के प्रयास किया गया है. सन  1901 में नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने ‘हिन्दी साइंटिफिक ग्रासरी’ नामक पारिभाषिक कोश तैयार किया था। सन 1940 में सुखसम्पत्ति राय भंडारी अजमेर का ‘ट्वेंटिएथ सेंच्युरी इंग्लिश-हिन्दी डिक्शनरी’ तथा सन 1951 में डॉ रघुनाथ का प्रकाशित ‘अ कॉम्प्रिहेंसिव इंग्लिश-हिन्दी डिक्शनरी’ आदि उल्लेखनीय कोशों का निर्माण किया गया। इसके पहले 1809 में इंग्लैंड में ‘ट्रांसलेशन सोसायटी’ द्वारा कुछ प्रयास किए गए थे। 1960 वर्ष हिन्दी में पारिभाषिक शब्दों के निर्माण की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. 1955 में गठित संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिशों को मानते हुए भारत के राष्ट्रपति ने सन 1960 में एक आदेश निकाला। इस आदेश के अनुसार, भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन अक्टूबर 1961 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग’ की स्थापना की गई। इस आयोग द्वारा अब तक प्राणी विज्ञान, मानविकी, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, समाज विज्ञान, प्रशासन और विधिक क्षेत्रों से संबंधित पारिभाषिक शब्दों का निर्माण एवं प्रकाशन इस आयोग द्वारा किया गया है। आयोग ने अनेक खंडों में विविध विषयों से संबंधित वृहत पारिभाषिक शब्द संग्रह’  प्रकाशित किए हैं।

वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के कार्य-

1. हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के लिए वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली का निर्माण करना। 

2. अखिल भारतीय शब्दावली की पहचान एवं सभी भारतीय भाषाओं में इसके अधिकारिक प्रचार और प्रसार पर बल देना।

3. कम्प्यूटर आधारित राष्ट्रीय शब्दावली बैंक का विकास, शब्दावली संबंधी परामर्श एवं सूचना देना।

4. वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली का प्रयोग-सर्वेक्षण एवं मानकीकरण।

पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के बारे में विद्वानों में अनेक मतभेद हैं। विद्वानों का एक वर्ग संस्कृत का समर्थक है। उनका मत है कि पारिभाषिक शब्द संस्कृत के धातु रूपों से बनाए जा सकते हैं। डॉ रघुवीर इस वर्ग के प्रमुख समर्थक विद्वान हैं। डॉ रघुवीर ने हिन्दी में पारिभाषिक शब्दावली के स्वरूप को 1972 पृष्ठों के कोश में प्रस्तुत किया है। उन्होंने ज्ञान-विज्ञान की लगभग 60 शाखाओं में उपलब्ध लगभग दो लाख शब्दों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

डॉ रघुवीर द्वारा निर्मित शब्दों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं- 

अंग्रेज़ी नाम – डॉ रघुवीर द्वारा प्रदत्त नाम

Cement – ब्रजचूर्ण

Hard pencil- कठोरांकिनी

Enquiry- परिपृच्छा

Calcium- चूर्णातु।

डॉ रघुवीर द्वारा संस्कृत भाषा के आधार पर बनाये गए पारिभाषिक शब्द आम जनता की जुबान पर आसानी से नहीं चढ़ पाए. परिणामस्वरूप इन पारिभाषिक शब्दों का बड़े पैमाने पर प्रयोग नहीं हो पाया. डॉ सूरजभान सिंह कहते हैं- “शब्द निर्माण की सार्थकता उसके प्रयोग में है। प्रयोग में आने पर ही शब्दों का मूल्यांकन और परीक्षण होता है और उनकी शक्ति व दुर्बलता सामने आती है. इस आधार पर कहा जा सकता है कि डॉ रघुवीर द्वारा बनाए गए पारिभाषिक शब्दों की सार्थकता सिद्ध नहीं हो पाई.

स्टीफन अल्मन ने अपने अंग्रेजी ग्रंथ ‘शब्द और उनके प्रयोग’ में शब्दावली के अभाव को दूर करने के लिए चार पद्धतियों के बारे में बताया है। भारत में भी कई विशेषज्ञों ने पारिभाषिक शब्दों के निर्माण की इन्हीं चारों पद्धतियों को स्वीकार करने की बात कही है-

ग्रहण पद्धति

पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के संबंध में विद्वानों के एक वर्ग का मानना है कि अंग्रेज़ी तथा अन्य भाषाओं में प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय शब्दावलियों को यथास्थिति अपना लेना चाहिए। कुछ विद्वान तर्क देते हैं कि यूरोपीय भाषाओं में जो पारिभाषिक शब्द प्रचलित हैं उन्हें उसी रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए। इसके पक्ष में वे मुख्यतः तीन तर्क देते हैं-

1. इससे नई पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण में लगने वाले समय, श्रम और धन को बचाया जा सकता है।

2. अंग्रेज़ी की पारिभाषिक शब्दावली अंतर्राष्ट्रीय शब्दावली है। इस शब्दावली को अपनाने से वैज्ञानिक, औद्योगिक तथा प्राविधिक क्षेत्रों में विश्व के अधिकतर देशों से सहज ही हमारा संवाद एवं संबंध स्थापित हो जाएगा।

3. इन विद्वानों का यह भी मानना है कि विश्व में संस्कृत, लैटिन, ग्रीक तथा चीनी ये चार भाषाएं ही पारिभाषिक शब्दों के निर्माण में पूर्णतः सक्षम हैं। हमें व्यक्तियों के नाम पर बने पारिभाषिक शब्दों को स्वीकार कर लेना चाहिए। जैसे वैज्ञानिक सत्येन्द्र बोस के नाम पर गढ़ा गया शब्द है बोसोने। हमें ऐसे शब्दों को भी पारिभाषिक शब्दों के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए जो लंबे समय से हमारी भाषा में घुलमिल गए हैं। जैसे- रेडियो, मोटर, कार, पेट्रोल, डीजल, लैंप, बटन, बैंक, हीटर आदि।

अनुकूलन पद्धति

जब विदेशी भाषा के पारिभाषिक शब्दों को अपनी भाषा की ध्वन्यात्मक एवं व्याकरणात्मक विशेषताओं के अनुकूल परिवर्तित कर अपनी भाषा में शामिल कर लिया जाता है तो इस प्रक्रिया को अनुकूलन कहते हैं। अनुकूलन की प्रक्रिया दो प्रकार से सम्पन्न की जाती है- 

किसी विदेशी शब्द को अपनी भाषा की ध्वनि पद्धति के अनुरूप ढाल लेना । यह ध्वन्यानुकूलन है। जैसे- ऑगस्ट- अगस्त, इंजिन- इंजन आदि।

दो भाषाओं का समासीकरण या संधिकरण कर अपनी भाषा में शामिल कर लेने को  शब्दानुकूलन की प्रक्रिया कहते हैं। इसमें विदेशी भाषा के शब्द को नामधातु मानकर अपने व्याकरण के सहयोग से नया रूप प्रदान किया जाता है। जैसे- Appelate- अपीलीय। 

संचयन सिद्धांत

इस सिद्धांत के तहत भारत में प्रचलित अन्य भाषाओं के शब्दों को पारिभाषिक शब्दों के रूप में संचय कर उन्हें स्वीकार कर लिया जाता है। जैसे- लालटेन- हाथ बत्ती, कचहरी, अदालत, दस्तावेज़ आदि।

निर्माण सिद्धांत

इस प्रक्रिया के अंतर्गत अपनी भाषा के उपसर्ग, प्रत्यय, समास, संधि, नाम, धातु आदि के आधार पर नए पारिभाषिक  शब्दों का निर्माण किया जाता है धातु, उपसर्ग तथा प्रत्यय नए शब्दों के निर्माण के महत्वपूर्ण तत्व हैं। इन तत्वों से दो प्रकार शब्द बनाए जाते हैं। वह शब्द जिनमें पारिभाषिक ध्वनि संकेत रहता है उन्हें ‘नाम’ कहते वे शब्द जिनमें कार्य करने का बोध होता है उन्हें ‘क्रिया’ कहा जाता है जैसे ‘वच’ धातु और विभिन्न प्रत्ययों से बने वचन, वाचा, वाचाल , वाचिक वाचस्पति आदि। वचन मूल शब्द और विभिन्न उपसर्गों के योग से बने शब्द प्रवचन, सुवचन, निर्वचन आदि।

हिन्दी में पारिभाषिक शब्दावली के अनेक रूप दिखाई देते हैं। जिनमें प्रमुख हैं- 

1. अंग्रेज़ी तथा अंतर्राष्ट्रीय पारिभाषिक शब्द

तत्वों के लिए- सल्फर, पोटैशियम, सोडियम

माप-तौल के लिए- ग्राम, मीटर, वोल्ट, लीटर, कैलरी, एम्पियर।

दूरसंचार के लिए- इंटरनेट, कम्प्यूटर, टेलीफोन, रेडियो, फैक्स

खेल-कूद के लिए- क्रिकेट, फुटबॉल, आऊट, रन आदि।

2. उपसर्ग से निर्मित शब्द

आ+लोचक- आलोचक, अधि+सूचना-अधिसूचना

अभि+यंता- अभियंता

3. प्रत्यय से निर्मित शब्द

निदेश+क- निदेशक

भौतिक+ई- भौतिकी

वरिष्ठ+तम- वरिष्ठतम

4. संधि से बने शब्द

पद+उन्नति- पदोन्नति

निदेश+आलय- निदेशालय

स्थान+अंतरण- स्थानांतरण

लेखक- डॉ अरुण कुमार, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, लक्ष्मीबाई महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय. सम्पर्क- 8178055172, 09868719955, lokmanchpatrika@gmail.com

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