लोकनाट्य ‘रासलीला’- अरुण कुमार

‘रासलीला’ उत्तर प्रदेश का एक प्रसिद्ध लोकनाट्य है जिसका विस्तार पूरे भारत के साथ-साथ विश्व के कई देशों तक है। ‘रासलीला’ शब्द ‘रास’ और ‘लीला’ दो शब्दों के योग से बना है। अनेक विद्वानों ने ‘रासलीला’ शब्द का उल्लेख करते हुए ‘रस’, ‘रहस्य’, ‘रासो’ और ‘रासक’ से संबंध स्थापित किया है। ‘रास’ को ‘दृश्य-काव्य’ अर्थात ‘नाटक’ की श्रेणी में रखा गया है। क्रीड़ा, केलि, विलास, विहार, सौंदर्य, श्रृंगार चेष्टा, प्रेमी का अनुकरण आदि ‘लीला’ के पर्यायवाची शब्द माने जाते हैं। असाधारण और अलौकिक चरित्र नायकों के क्रिया-कलाप को ‘लीला’ कहते हैं। वैष्णव और भक्त आचार्यों के अनुसार ‘लीला’ शब्द में ‘ली’ का अर्थ ‘मिलन’ और ‘ला’ का अर्थ ‘प्राप्त करना’ होता है। वर्तमान समय में ‘रासलीला’ का तात्पर्य लोकनाट्य के उस रूप से है जिसमें राधा, कृष्ण और गोपियों की भूमिका में कुछ पात्र नृत्य, गीत और संगीत के माध्यम से अभिनय करते हैं।

कृष्ण का लोक-लुभावन, लोक-रक्षक और प्रेमी रूप हमारे लोकजीवन का महत्वपूर्ण अंग है। शास्त्रों और पुराणों में शिव, राम और कृष्ण का चरित्र जिस रूप में है वही रूप लोक में नहीं है। लोक ने उन्हें अपने ढंग से अपनी रुचियों, आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार अपनाया है। लोक द्वारा निर्मित और स्वीकृत परम्पराओं, जीवन मूल्यों और आदर्शों का सम्बन्ध जितना धर्म और आध्यात्म से होता है उससे कहीं अधिक उसके भौतिक जीवन से। लोक की सामाजिक व्यवस्था के संचालन में भी इनकी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लोक अपना मूल्यांकन करने तथा विभिन्न प्रकार के भयों से मुक्ति के लिए परम्पराओं, मूल्यों और आदर्शों के साथ-साथ कुछ ऐसे चरित्रों को भी स्वीकार करता है जो विशिष्ट हों। इन चरित्रों का संबंध प्रायः इतिहास और पुराण से होता है लेकिन उसमें वह परिवर्तन कर लेता है। वह इन चरित्रों में कुछ विशेषताएं जोड़ लेता है। भारत के लोक ने राम और कृष्ण को भी इसी प्रक्रिया से स्वीकार किया है। शास्त्रों के राम और कृष्ण लोक के राम और कृष्ण से अलग हैं। लोक में मौजूद पूजा-पद्धतियों, कलाओं और नाट्यरूपों में इस अंतर को आसानी से देखा जा सकता है। लोकनाट्य ‘रासलीला’ में भी कृष्ण को अपने-अपने ढंग से अभिव्यक्त किया जाता है।
रासलीला का उद्भव
रासलीला के उद्भव को लेकर अलग-अलग विद्वानों की अलग-अलग राय है। कुछ विद्वानों का कहना है कि कृष्ण के प्रति ब्रजवासियों के मन में बड़ा स्नेह था। गोपियां तो विशेष रूप से उन पर मुग्ध थीं। एक बार शरद पूर्णिमा की रात में गोपियों ने कृष्ण के साथ मिलकर नृत्य-गान किया था। इसका नाम ‘रास’ पड़ा। बाद में ‘रास’ को ब्रजवासी उत्सव के रूप में मनाने लगे। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि रात में रासलीला को उत्सव के रूप में मनाना कंस द्वारा कृष्ण की हत्या के लिए भेजे जाने वाले राक्षसों से बचने का उपाय था। एक तरह से गोकुल के लोग रात में जगकर कृष्ण की रखवाली करते थे।
पुराणों के अनुसार एक बार गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण से उन्हें पति के रूप में पाने की इच्छा प्रकट की। श्रीकृष्ण ने गोपियों को उनकी इच्छा पूरी करने का वचन दिया। कृष्ण ने गोपियों को शरद पूर्णिमा की रात में यमुना नदी के किनारे ‘निधिवन’ में बुलाया। सभी गोपियां सज-धज कर कृष्ण से मिलने पहुंची। जब गोपियाँ आ गईं तो कृष्ण ने रास आरम्भ किया। यहां कृष्ण ने अद्भुत लीला की। जितनी गोपियां थीं कृष्ण उतने रुप में प्रकट हो गए। सभी गोपियों को उनका कृष्ण मिल गया। माना जाता है कि आज भी प्रत्येक वर्ष शरद पूर्णिमा की रात को गोपियों संग कृष्ण रास रचाते हैं। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा को शास्त्रों में बहुत महत्व दिया गया है। प्रेम निवेदन के लिए भी शरद पूर्णिमा की रात सबसे उत्तम मानी जाती है। इस रात चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं में पूर्ण होता है, इसलिए वह सबसे अधिक सुंदर दिखाई देता है। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है।

कुछ विद्वानों का मानना है कि ‘रासलीला’ का प्रारंभ सोलहवीं सदी में वल्लभाचार्य और हितहरिवंश द्वारा की गई। उन्होंने श्रृंगार रस में धर्म के साथ नृत्य और संगीत की प्रतिष्ठा की और उसका नेतृत्व श्रीकृष्ण सौंप दिया। यही शैली राधा तथा गोपियों की श्रृंगार पूर्ण क्रीड़ाओं से युक्त होकर ‘रासलीला’ नाम से प्रसिद्ध हुई। भक्तिकाल में इसमें राधा-कृष्ण की प्रेमलीलाओं का प्रदर्शन होता था, जिनमें आध्यात्मिकता की प्रधानता होती थी। इनका मूलाधार सूरदास और अष्टछाप के कवियों के पद और भजन होते थे। उनमें संगीत और काव्य दोनों का रस होता था। इन लीलाओं से दर्शकों को धर्मोपदेश और मनोरंजन साथ-साथ मिलता था। इनके पात्रों- कृष्ण, राधा और गोपियों के संवादों में गंभीरता का अभाव और प्रेमालाप की अधिकता रहती थी। कार्य की न्यूनता और संवादों का बाहुल्य होता था।
यह भी माना जाता है कि रासलीला यानी अभिनय, संवाद, नृत्य और गीतों से युक्त लोकनाट्य का ब्रज क्षेत्र में सबसे पहले आयोजन नारायण भट्ट ने किया था। सबसे पहले उन्होंने कृष्ण की लीला स्थलों का निर्धारण किया और उन लीला स्थलों पर रासलीला आरंभ की। ‘श्रीमद्भागवत’ की एक कथा के अनुसार राधा और गोपियों को जब अभिमान हो जाता है तब कृष्ण अंतर्धान हो जाते हैं। कृष्ण को अपने पास न पाकर राधा और गोपियां विरह की अग्नि में जलने लगती हैं। वियोग की स्थिति में श्रीकृष्ण को अपने पास अनुभव करने के लिए वे स्वयं कृष्ण बनकर उनके जीवन से संबंधित घटनाओं को आधार बनाकर लीला करती हैं। अतः वियोग श्रृंगार ही रासलीला का प्रमुख स्रोत है।
प्राचीन भारतीय संस्कृति में प्रेम की उदात्त अभिव्यक्ति हुई है। कृष्ण की रासलीला इसी का प्रतीक है। भक्तिकाल में रासलीला शब्द का खूब प्रयोग हुआ है। वास्तव में रास एक कला विधा है। प्रेम और आनंद की अभिव्यक्ति के लिए कृष्ण की प्रेमलीला का अभिनय ही रासलीला कहलाता है। यह मूलतः एक नृत्य है, जिसमें कृष्ण को केन्द्र में रखकर गोपियां उनके चारों ओर मुरली की धुन पर नृत्य करती हैं। अष्टछाप के भक्त कवियों ने प्रेम की अभिव्यक्ति करने वाले सुन्दर रासगीतों की रचना की है। रास में आध्यात्मिकता होती है, जिसमें गोपियों का कृष्ण के प्रति अनुराग व्यक्त होता है। वे वृत्ताकार मंडल में प्रेमाभिव्यक्ति करती हैं।
भक्तिकाल में जो आध्यात्मिकता मिलती थी, वह धीरे-धीरे रीतिकाल तक गायब होती चली गई। रीतिकाल में यह विशुद्ध मनोरंजन शैली ही बन गई थी। इस काल में रासलीलाओं की धार्मिकता, रस और संगीत की क्षति हुई। रीतिकाल तक आते-आते न तो उनमें संगीत की शास्त्रीयता बची और न ही रस का प्रवाह रहा। उनमें केवल नृत्य, वाग्विलास, उक्ति वैचित्र्य की प्रधानता हो गई। उनका उद्देश्य केवल मनोरंजन हो गया।
रीतिकाल के बाद रासलीलाओं को उनका खोया हुआ वैभव वापस मिल गया. आज भी ब्रज की रास मंडलियां प्रसिद्ध हैं। रास को कत्थक नृत्य से भी जोड़ा जाता है, किन्तु कत्थक जहां एकल प्रस्तुति है वहीं रासलीला सामूहिक प्रस्तुति है। हालांकि रास शैली का प्रयोग कत्थक और मणिपुरी जैसी शास्त्रीय नृत्य शैलियों में हुआ है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा गुजरात का जगत प्रसिद्ध डांडिया नृत्य को भी रास के नाम से ही जाना जाता है। रास का मुहावरेदार प्रयोग भी बोलचाल की भाषा में खूब होता है। रास रचाना यानी स्त्री-पुरुष में आपसी मेलजोल बढ़ना, रास रंग यानी ऐश्वर्य और आमोद-प्रमोद में लीन रहना।
स्वामी वल्लभाचार्य के कृष्णभक्ति आंदोलन तथा स्वामी हरिदास, हित हरिवंश, घमंडीदेव और नारायण भट्ट जैसे संतों ने रासलीला की पूर्व पीठिका तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रारंभ में दानलीला, मानलीला, माखनचोरी, कृष्ण की बाल सुलभ चेष्टाओं का अभिनय किया जाता था। बाद में कृष्ण के जीवन को अपने काव्य का विषय बनाने वाले अष्टछाप के कवियों विशेष रूप से सूरदास ने इसे और अधिक जीवंत बनाया। पन्द्रवीं-सोलहवीं शताब्दी के आस-पास रासलीला को नया आयाम मिला. इसके विकास में नन्ददास, ब्रजवासी दास, ध्रुवदास, दामोदर स्वामी, नारायण स्वामी, भारतेन्दु और वियोगी हरि ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की ‘श्रीचन्द्रावली’ नाटिका पर रासलीला का स्पष्ट प्रभाव है और वियोगी हरि की ‘छद्म-योगिनी नाटिका’ भी रासलीला से प्रभावित है
रासलीला का रंगमंच
सभी लोकनाट्यों की तरह रासलीला का रंगमंच भी साधारण होता है। वह प्रायः मंदिरों की मणि पर, ऊंचे चबूतरों या किसी ऊंचे स्थान पर बांसों एवं कपड़ों से बनाया जाता है। उसमें एक पर्दा होता है। पात्र इसी पर्दे के पीछे से मंच पर आते हैं। दृश्यांतर की सूचना मंच से पात्रों के चले जाने पर निर्देशक आकर देता रहता है। रंगभूमि में गायक और वादक के बैठने के लिए स्थान सुरक्षित होता है। दर्शक प्रायः खुले मैदान में बैठते हैं। कभी-कभार चांदनी या टेंट भी लगा दिया जाता है। रास देखने के लिए दर्शकों की बड़ी संख्या जुटती है। रास करने वालों की अनेक मंडलियां हैं, जो पूना, पंजाब और पूर्वी बंगाल आदि देश के कई भागों तक रासलीला करने जाती हैं।
रासलीला की प्रस्तुति
रासलीला में कृष्ण के जीवन से संबंधित अनेक प्रसंगों यथा माखनचोरी, कालियादमन, चीर हरण, गोबर्धनधारक, कंस वध, उद्धव संवाद आदि अभिनीत किए जाते हैं। गायन, कृष्ण की झांकियां, वेशभूषा, सजावट, आभूषण, फूलों की रूप-सज्जा रासलीला का प्रमुख आकर्षण हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता उसका संगीत है। शास्त्रीय संगीत, संगीत में ध्रुपद, सधे कंठ से छोटी-छोटी लीलाओं का गायन दर्शकों का मन मोह लेता है। रासलीला में रामलीला की तरह न तो कथानक होते हैं, न घटनाएं और न ही नाटकीयता। वास्तविक रासलीला की शुरुआत से पहले ढोलक, हारमोनियम और मंजीरा आदि के साथ भजन गाकर दर्शकों की भीड़ जुटाई जाती है। सबसे पहले सूत्रधार के रूप में एक ब्राह्मण या पुरोहित मंच पर आता है और लीला के बारे में बताता है. यह प्ररोचना या प्रस्तावना जैसा कार्य है।
इसके बाद पर्दा उठता है और राधा-कृष्ण की युगल छवि की आरती की जाती है। आरती के समय रंगभूमि में बैठे गायक, वादक तथा बाहर बैठे दर्शक खड़े हो जाते हैं। मंगलाचरण के रूप में जयदेव के गीतगोविन्द, श्रीमद्भागवत, विद्यापति, सूरदास तथा अन्य कृष्ण भक्त कवियों के पदों का गायन होता है। पर्दा फिर गिरता है और उसके बाद वास्तविक रासलीला का कार्यक्रम शुरू होता है। रासलीला के पात्रों में राधा-कृष्ण तथा गोपियां होती हैं। बीच-बीच में हास्य के प्रसंग भी आते हैं। विदूषक के रूप में ‘मनसुखा’ रहता है जो गोपियों के साथ प्रेम और हंसी की बात करके कृष्ण के प्रति उनके अनुराग को व्यक्त करता है. वह दर्शकों का मनोरंजन भी करता है। जब कभी पर्दे के पीछे नेपथ्य में पात्रों को रूप सज्जा करने में देरी होती है तो उस समय हास्य या व्यंग्यपूर्ण प्रहसन की योजना कर ली जाती है। इसका विषय रासलीला से अलग होता है।
रासलीला के पात्रों की वेशभूषा तथा साज-सज्जा भी सादगीपूर्ण होती है। इसके लिए किसी विशेष प्रकार की तैयारी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। प्रायः पारंपरिक श्रृंगार साधनों एवं वस्तुओं जैसे काजल, सुरमा, लाली, चन्दन, मुर्दाशंखी, मुकुट तथा चमकते वस्त्रों का प्रयोग कर पात्र अपना रूप सजाते हैं।
रास कार्य करने वाले पात्रों को ‘रासधारी’ कहते हैं। रासलीला में कभी कृष्ण गोपियों के कार्यों एवं चेष्टाओं का अनुकरण करते हैं तो कभी गोपियां कृष्ण की रूप चेष्टा आदि का अनुकरण करती है। कभी कृष्ण गोपियों के हाथ में हाथ बांधकर नाचते हैं। यही लीला है। इसमें कार्य की अधिकता नहीं होती लेकिन पद प्रधान संवाद, नृत्य, गीत, वेणु ध्वनि, ताल, लय, रस की अबाध धारा बहती है। रंग संकेतों के लिए पर्दे के पीछे निर्देशक रहता है जो पात्रों के संवाद भूल जाने पर स्मरण कराता रहता है। लीला में अभिनय कम संलाप अधिक होता है। कृष्ण को धीर ललित नायक कहा जाता है जो सभी कलाओं के अवतार माने जाते हैं। उनके साथ राधा को उनकी अनुरंजक शक्ति के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। राधा भी समस्त गुणों एवं कलाओं की नायिका है। गोपियां, सखियां सभी यौवना और भाव प्रगल्भा होती हैं। उनमें शोभा, विलास, माधुर्य, कान्ति, दीप्ति, प्रागल्भ्य, औदार्य, लीला, हाव, हेला आदि सभी भावानुभाव होते हैं।
रासलीला के अंत में राधा-कृष्ण की युगल छवि की पुनः आरती होती है। इस बार दर्शक भी आरती लेते हैं और आरती की थाल में कुछ पैसे चढ़ाते हैं। आरती के बाद लीला के विषय में मंगल कामना की जाती है । यह एक प्रकार का भरत वाक्य है। इसके पश्चात लीला का कार्यक्रम सम्पन्न हो जाता है और पटाक्षेप हो जाता है।
आस्थावान व्यक्ति रासलीला का अपनी मान्यता के अनुसार विश्लेषण करते हैं। उनके अनुसार श्रीकृष्ण परब्रह्म हैं और राधा व गोपियाँ जीवात्मा हैं। रासलीला परमात्मा और आत्मा का मिलन है। आत्मा और परमात्मा के मिलन के उद्देश्य से कृष्ण राधा और गोपियों के साथ नित्य रासलीला में लगे रहते हैं।
लेखक- डॉ अरुण कुमार, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, लक्ष्मीबाई महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय व सम्पादक, लोकमंच पत्रिका। सम्पर्क- arunlbc26@gmail.com, 8178055172, 09999445502 .
Enjoyed every bit of your article.Much thanks again. Will read on…
Thanks so much for the blog. Much obliged.
Looking forward to reading more. Great article post.Thanks Again. Really Cool.
Very good post.Really thank you!
Major thanks for the blog.Thanks Again. Keep writing.
Thanks again for the post.Really thank you! Really Great.
After I originally commented I clicked the -Notify me when new feedback are added- checkbox and now every time a comment is added I get four emails with the identical comment. Is there any manner you may remove me from that service? Thanks!
Hi! I simply want to offer you a huge thumbs up for your great info you have got right here on this post. I am returning to your blog for more soon.
A big thank you for your blog post.Much thanks again. Keep writing.
I loved your article post. Awesome.
This is a really good tip especially to those fresh to the blogosphere. Brief but very precise informationÖ Thanks for sharing this one. A must read article!
Really enjoyed this blog.Really looking forward to read more. Want more.
A round of applause for your blog article.Much thanks again. Really Great.
Another year wallykazam fruit frenzy game Fatty acids—the good fats found in fish like mackerel, salmon and sardines—turn out to work against chemotherapy agents in cancer patients, according to research published Thursday.
Thanks again for the article post.Really looking forward to read more. Cool.
Major thanks for the blog post.Really looking forward to read more. Fantastic.
orlistat 60 blue capsule – orlistat myproana xenical 84 capsules
I really liked your article post.Thanks Again. Great.
Major thanks for the blog post.Much thanks again. Awesome.
hello!,I like your writing so much! percentage we be in contact extra about your post on AOL? I need an expert on this house to unravel my problem. May be that is you! Having a look ahead to look you.
Very informative blog.Really looking forward to read more. Keep writing.
Thanks-a-mundo for the post. Awesome.
Hi there! I’m at work surfing around your blog from my new apple iphone! Just wanted to say I love reading through your blog and look forward to all your posts! Carry on the great work!
Your style is really unique compared to other folks I’ve read stuff from.Thanks for posting when you have the opportunity, Guess I’ll just book mark this blog.
A big thank you for your article.Really thank you! Fantastic.
Im grateful for the blog.Thanks Again. Great.
Thanks for the blog. Want more.
I value the blog post. Want more.
Very informative blog. Awesome.
I loved your post. Great.
Wow! This can be one particular of the most beneficial blogs We ave ever arrive across on this subject. Basically Great. I am also an expert in this topic therefore I can understand your hard work.
My brother suggested I may like this blog. He wasentirely right. This publish actually made my day. You can notimagine just how a lot time I had spent for this info!Thanks!
Very good blog post.Really looking forward to read more. Keep writing.
Really appreciate you sharing this blog article. Keep writing.
Very neat blog article.Much thanks again. Will read on…
I really liked your article post. Want more.
Thanks for the article post.Much thanks again. Awesome.
Thank you for your blog post.Really looking forward to read more. Really Cool.
Really informative article.Much thanks again. Will read on…
Say, you got a nice post.Much thanks again. Much obliged.
Say, you got a nice post.Thanks Again. Really Great.
I really like and appreciate your blog article.Much thanks again. Cool.
I appreciate you sharing this article post.Really looking forward to read more. Fantastic.
Thanks-a-mundo for the article post. Much obliged.
You could definitely see your enthusiasm within the work you write. The sector hopes for more passionate writers such as you who aren’t afraid to mention how they believe. All the time follow your heart.
Thank you for your blog article.Much thanks again. Will read on…
I really liked your blog article. Really Cool.
Great, thanks for sharing this article post.Thanks Again. Fantastic.
scoliosisHi, yup this paragraph is truly nice and I have learned lot of thingsfrom it on the topic of blogging. thanks. scoliosis
Thanks-a-mundo for the blog article.Really thank you! Want more.
help with essays – paper writing online purchase essays